एतदेव हि विज्ञानं न तथैकेन येन यत् ।
स्थित्युत्पत्त्यप्ययान् पश्येद् भावानां त्रिगुणात्मनाम् ॥ १५ ॥
अनुवाद
जब कोई व्यक्ति उन अठाईस पृथक भौतिक तत्त्वों को नहीं देखता जो एक ही कारण से उत्पन्न होते हैं, बल्कि स्वयं उस कारण, भगवान को देखता है, तो उस समय उसका प्रत्यक्ष अनुभव विज्ञान कहलाता है।