अग्निहोत्रं च दर्शश्च पौर्णमासश्च पूर्ववत् ।
चातुर्मास्यानि च मुनेराम्नातानि च नैगमै: ॥ ८ ॥
अनुवाद
वानप्रस्थ को चाहिए कि अग्निहोत्र, दर्शन तथा पूर्णमास यज्ञों को उसी प्रकार करना चाहिए जिस प्रकार गृहस्थाश्रम में किया करते थे। चातुर्मास्य के व्रत तथा यज्ञ भी सम्पन्न करने चाहिए क्योंकि वेदों के जानकारों ने वानप्रस्थों के लिए इन्हीं अनुष्ठानों का आदेश दिया है।