श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 11: सामान्य इतिहास  »  अध्याय 18: वर्णाश्रम धर्म का वर्णन  »  श्लोक 2
 
 
श्लोक  11.18.2 
 
 
कन्दमूलफलैर्वन्यैर्मेध्यैर्वृत्तिं प्रकल्पयेत् ।
वसीत वल्कलं वासस्तृणपर्णाजिनानि वा ॥ २ ॥
 
अनुवाद
 
  वनप्रस्थ आश्रम अपनाने के बाद मनुष्य को अपना भरण-पोषण जंगल में उगने वाली शुद्ध जड़ों और फलों को खाकर करना चाहिए। वे पेड़ की छाल, घास, पत्तियों या जानवरों की खाल से बने कपड़े पहने।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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