संत को चाहिए कि चलने से पहले वह अपनी आँखों से यह निश्चित कर ले कि कहीं कोई जीव या कीट तो नहीं है, ताकि वह उसे अपने पैर से कुचल न दे। उसे कपड़े के एक कोने से छानकर ही जल पीना चाहिए और ऐसे शब्द बोलने चाहिए जिनमें सच्चाई की शुद्धता हो। इसी प्रकार, उसे वही कर्म करने चाहिए जिन्हें उसका मन शुद्ध निश्चित कर चुका हो।