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श्लोक 12
श्लोक
11.18.12
यदा कर्मविपाकेषु लोकेषु निरयात्मसु ।
विरागो जायते सम्यङ् न्यस्ताग्नि: प्रव्रजेत्तत: ॥ १२ ॥
अनुवाद
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यदि वानप्रस्थ यह जानते हुए कि ब्रह्मलोक को प्राप्त कर पाना भी एक दयनीय स्थिति है, सकाम कर्मों के सभी संभावित परिणामों से पूरी तरह से विरक्ति को प्राप्त कर लेता है, तो वह संन्यास आश्रम ग्रहण कर सकता है।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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