श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 11: सामान्य इतिहास  »  अध्याय 17: भगवान् कृष्ण द्वारा वर्णाश्रम प्रणाली का वर्णन  »  श्लोक 56
 
 
श्लोक  11.17.56 
 
 
यस्त्वासक्तमतिर्गेहे पुत्रवित्तैषणातुर: ।
स्‍त्रैण: कृपणधीर्मूढो ममाहमिति बध्यते ॥ ५६ ॥
 
अनुवाद
 
  परंतु जिस गृहस्थ का मन अपने घर से जुड़ा होता है और जो अपने धन और संतान को भोगने की प्रबल इच्छाओं से व्याकुल रहता है, स्त्रियों के लिए कामासक्त रहता है, जिसके मन में कंजूसी भरी रहती है और जो मूर्खतावश यह सोचता है कि, "सब कुछ मेरा है और मैं ही सबकुछ हूँ", वह निस्संदेह मायाजाल में फँसा हुआ है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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