परंतु जिस गृहस्थ का मन अपने घर से जुड़ा होता है और जो अपने धन और संतान को भोगने की प्रबल इच्छाओं से व्याकुल रहता है, स्त्रियों के लिए कामासक्त रहता है, जिसके मन में कंजूसी भरी रहती है और जो मूर्खतावश यह सोचता है कि, "सब कुछ मेरा है और मैं ही सबकुछ हूँ", वह निस्संदेह मायाजाल में फँसा हुआ है।