श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 11: सामान्य इतिहास  »  अध्याय 17: भगवान् कृष्ण द्वारा वर्णाश्रम प्रणाली का वर्णन  »  श्लोक 41
 
 
श्लोक  11.17.41 
 
 
प्रतिग्रहं मन्यमानस्तपस्तेजोयशोनुदम् ।
अन्याभ्यामेव जीवेत शिलैर्वा दोषद‍ृक् तयो: ॥ ४१ ॥
 
अनुवाद
 
  यदि कोई ब्राह्मण यह मानता है कि दूसरों से दान लेना उसके तप, आध्यात्मिक प्रतिष्ठा और यश को नष्ट कर देगा, तो उसे वेद ज्ञान सिखाकर और यज्ञ करके अपने जीवन का निर्वाह करना चाहिए। यदि वह यह मानता है कि ये दोनों पेशे भी उसकी आध्यात्मिक स्थिति को नुकसान पहुँचाते हैं, तो उसे खेतों में गिरे अन्न को इकट्ठा करके और दूसरों पर निर्भर हुए बिना जीवन जीना चाहिए।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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