श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 11: सामान्य इतिहास  »  अध्याय 17: भगवान् कृष्ण द्वारा वर्णाश्रम प्रणाली का वर्णन  »  श्लोक 12
 
 
श्लोक  11.17.12 
 
 
त्रेतामुखे महाभाग प्राणान्मे हृदयात्‍त्रयी ।
विद्या प्रादुरभूत्तस्या अहमासं त्रिवृन्मख: ॥ १२ ॥
 
अनुवाद
 
  हे परम सौभाग्यशाली, त्रेता युग की शुरुआत में, जीवन वायु के स्थान से, जो मेरा हृदय है, वैदिक ज्ञान तीन भागों में प्रकट हुआ - ऋग, साम और यजु के रूप में। उसके बाद, उस ज्ञान से मैं तीन यज्ञों के रूप में प्रकट हुआ।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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