तेज: श्री: कीर्तिरैश्वर्यं ह्रीस्त्याग: सौभगं भग: ।
वीर्यं तितिक्षा विज्ञानं यत्र यत्र स मेंऽशक: ॥ ४० ॥
अनुवाद
जो भी शक्ति, सौंदर्य, यश, ऐश्वर्य, विनम्रता, त्याग, मानसिक आनंद, सौभाग्य, शक्ति, सहनशीलता या आध्यात्मिक ज्ञान हो सकता है, वह सब मेरे ऐश्वर्य का विस्तार मात्र है।