श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 11: सामान्य इतिहास  »  अध्याय 16: भगवान् की विभूतियाँ  »  श्लोक 36
 
 
श्लोक  11.16.36 
 
 
गत्युक्त्युत्सर्गोपादानमानन्दस्पर्शलक्षणम् ।
आस्वादश्रुत्यवघ्राणमहं सर्वेन्द्रियेन्द्रियम् ॥ ३६ ॥
 
अनुवाद
 
  मैं पाँच कर्मइन्द्रियों—पैर, वाणी, गुदा, हाथ और यौन अंग—के साथ ही पाँच ज्ञानेन्द्रियों—स्पर्श, दृष्टि, स्वाद, श्रवण और गंध—का कार्यकलाप हूँ। मैं शक्ति भी हूँ जिससे प्रत्येक इन्द्रिय अपने अपने इन्द्रिय-विषय का अनुभव करती है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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