अहं युगानां च कृतं धीराणां देवलोऽसित: ।
द्वैपायनोऽस्मि व्यासानां कवीनां काव्य आत्मवान् ॥ २८ ॥
अनुवाद
समस्त युगों में मैं सत्युग हूँ, और स्थिर मुनियों में देवल तथा असित हूँ। वेदों का विभाजन करने वालों में मैं कृष्ण द्वैपायन वेदव्यास हूँ, और विद्वानों में मैं आध्यात्मिक विज्ञान के ज्ञाता शुक्राचार्य हूँ।