यो वै मद्भावमापन्न ईशितुर्वशितु: पुमान् ।
कुतश्चिन्न विहन्येत तस्य चाज्ञा यथा मम ॥ २७ ॥
अनुवाद
जो व्यक्ति मुझ पर ठीक से ध्यान लगाता है, वह परम नियंत्रक और शासक होने का मेरा स्वरूप प्राप्त कर लेता है। तब मेरे समान उसका आदेश किसी भी प्रकार से व्यर्थ नहीं होता।