श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 11: सामान्य इतिहास  »  अध्याय 15: भगवान् कृष्ण द्वारा योग-सिद्धियों का वर्णन  »  श्लोक 27
 
 
श्लोक  11.15.27 
 
 
यो वै मद्भ‍ावमापन्न ईशितुर्वशितु: पुमान् ।
कुतश्चिन्न विहन्येत तस्य चाज्ञा यथा मम ॥ २७ ॥
 
अनुवाद
 
  जो व्यक्ति मुझ पर ठीक से ध्यान लगाता है, वह परम नियंत्रक और शासक होने का मेरा स्वरूप प्राप्त कर लेता है। तब मेरे समान उसका आदेश किसी भी प्रकार से व्यर्थ नहीं होता।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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