यथा सङ्कल्पयेद् बुद्ध्या यदा वा मत्पर: पुमान् ।
मयि सत्ये मनो युञ्जंस्तथा तत् समुपाश्नुते ॥ २६ ॥
अनुवाद
मेरी श्रद्धा रखने वाला योगी अपने मन को मुझमें समर्पित कर, यह जानते हुए कि मेरी इच्छा सदैव पूर्ण होती है, वह उन्हीं साधनों के द्वारा अपना उद्देश्य प्राप्त करेगा, जिसका पालन करने का संकल्प उसने लिया है।