श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 11: सामान्य इतिहास  »  अध्याय 15: भगवान् कृष्ण द्वारा योग-सिद्धियों का वर्णन  »  श्लोक 22
 
 
श्लोक  11.15.22 
 
 
यदा मन उपादाय यद् यद् रूपं बुभूषति ।
तत्तद् भवेन्मनोरूपं मद्योगबलमाश्रय: ॥ २२ ॥
 
अनुवाद
 
  जब कोई योगी किसी विशेष विधि से अपने मन को लगाकर कोई विशिष्ट रूप ग्रहण करना चाहता है, तो वही रूप तुरन्त प्रकट होता है। ऐसी सिद्धि मेरी उस अचिन्त्य योगशक्ति के आश्रय में मन को लीन करने से सम्भव है, जिसके द्वारा मैं असंख्य रूप धारण करता हूँ।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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