जो योगी अपना मन मुझमें लीन कर देता है और उसके बाद मन के पीछे चलने वाली वायु का उपयोग भौतिक शरीर को मुझमें लीन करने के लिए करता है, वह मेरे ध्यान की शक्ति से उस योग-सिद्धि को प्राप्त करता है जिससे उसका शरीर तुरन्त ही मन के पीछे-पीछे चलता है जहाँ कहीं भी मन जाता है।