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अध्याय 15: भगवान् कृष्ण द्वारा योग-सिद्धियों का वर्णन
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श्लोक 19
श्लोक
11.15.19
मय्याकाशात्मनि प्राणे मनसा घोषमुद्वहन् ।
तत्रोपलब्धा भूतानां हंसो वाच: शृणोत्यसौ ॥ १९ ॥
अनुवाद
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वह पवित्र आत्मा, जो मेरे भीतर घटित हो रही असाधारण ध्वनि तरंगों पर आकाश और कुल जीवन वायु के साकार रूप के तौर पर अपना ध्यान केंद्रित करती है, वह आकाश में सभी जीवों की वाणी को अनुभव कर सकती है।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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