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श्रीमद् भागवतम
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अध्याय 15: भगवान् कृष्ण द्वारा योग-सिद्धियों का वर्णन
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श्लोक 18
श्लोक
11.15.18
श्वेतद्वीपपतौ चित्तं शुद्धे धर्ममये मयि ।
धारयञ्छ्वेततां याति षडूर्मिरहितो नर: ॥ १८ ॥
अनुवाद
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धर्मधारक, साक्षात् शुद्धता एवं श्वेतद्वीप के स्वामी के रूप में मुझमें अपना मन एकाग्र करने वाला व्यक्ति शुद्ध जीवन प्राप्त करता है और भौतिक उपद्रवों की छह ऊर्मियों - भूख, प्यास, क्षय, मृत्यु, शोक और मोह से मुक्त हो जाता है।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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