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अध्याय 15: भगवान् कृष्ण द्वारा योग-सिद्धियों का वर्णन
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श्लोक 17
श्लोक
11.15.17
निर्गुणे ब्रह्मणि मयि धारयन् विशदं मन: ।
परमानन्दमाप्नोति यत्र कामोऽवसीयते ॥ १७ ॥
अनुवाद
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जो व्यक्ति मेरे विशुद्ध और गुणहीन ब्रह्म रूप पर अपना शुद्ध मन एकाग्र करता है, वह परम सुख प्राप्त करता है, जिसमें उसकी सभी इच्छाएँ पूर्ण रूप से पूरी हो जाती हैं।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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