श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 11: सामान्य इतिहास  »  अध्याय 15: भगवान् कृष्ण द्वारा योग-सिद्धियों का वर्णन  »  श्लोक 16
 
 
श्लोक  11.15.16 
 
 
नारायणे तुरीयाख्ये भगवच्छब्दशब्दिते ।
मनो मय्यादधद् योगी मद्धर्मा वशितामियात् ॥ १६ ॥
 
अनुवाद
 
  वह योगी जो अपने चित्त को मेरे नारायण रूप में लगाता है, जिसे सभी ऐश्वर्यों से पूर्ण चौथी अवस्था (तुरीय) माना जाता है, वह मेरे स्वभाव से युक्त हो जाता है और उसे वशिता नामक योग-सिद्धि प्राप्त होती है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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