महत्यात्मनि य: सूत्रे धारयेन्मयि मानसम् ।
प्राकाम्यं पारमेष्ठ्यं मे विन्दतेऽव्यक्तजन्मन: ॥ १४ ॥
अनुवाद
जो व्यक्ति सकाम कर्मों की शृंखला को अभिव्यक्त करने वाले महत् तत्त्व की उस अवस्था के परमात्मा स्वरूप मुझमें अपनी समस्त मानसिक क्रियाओं को एकाग्र करता है, वह मुझसे, जिसकी उपस्थिति भौतिक अनुभूति से परे है, प्राकाम्य नामक सर्वोत्कृष्ट रहस्यमय सिद्धि प्राप्त करता है।