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अध्याय 15: भगवान् कृष्ण द्वारा योग-सिद्धियों का वर्णन
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श्लोक 12
श्लोक
11.15.12
परमाणुमये चित्तं भूतानां मयि रञ्जयन् ।
कालसूक्ष्मार्थतां योगी लघिमानमवाप्नुयात् ॥ १२ ॥
अनुवाद
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मैं प्रत्येक वस्तु के भीतर विद्यमान हूँ, इसलिए मैं भौतिक तत्वों के परमाणु रूपों का सार हूँ। मेरे इस रूप में अपने मन को संलग्न कर के योगी लघिमा नामक सिद्धि प्राप्त कर सकता है, जिसके द्वारा वह काल समान सूक्ष्म परमाणु तत्व का एहसास कर सकता है।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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