श्रीउद्धव उवाच
यथा त्वामरविन्दाक्ष यादृशं वा यदात्मकम् ।
ध्यायेन्मुमुक्षुरेतन्मे ध्यानं त्वं वक्तुमर्हसि ॥ ३१ ॥
अनुवाद
श्री उद्धव ने कहा: हे कमलनयन कृष्ण, जो मुक्ति प्राप्त करना चाहता है, वह किस विधि से ध्यान कर सकता है? उसका ध्यान कैसे हो और वह किस रूप का ध्यान करे? कृपया मुझे ध्यान के इस विषय पर विस्तार से बताएँ।