श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 11: सामान्य इतिहास  »  अध्याय 14: भगवान् कृष्ण द्वारा उद्धव से योग-वर्णन  »  श्लोक 30
 
 
श्लोक  11.14.30 
 
 
न तथास्य भवेत् क्लेशो बन्धश्चान्यप्रसङ्गत: ।
योषित्सङ्गाद् यथा पुंसो यथा तत्सङ्गिसङ्गत: ॥ ३० ॥
 
अनुवाद
 
  विविध आसक्तियों से होने वाले सभी प्रकार के कष्टों और बंधनों में से ऐसा कोई भी नहीं है जो स्त्री आसक्ति और जिनका लगाव स्त्रियों के प्रति है, उनके घनिष्ठ संपर्क से होने वाले कष्टों और बंधनों से अधिक हो।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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