श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 11: सामान्य इतिहास  »  अध्याय 14: भगवान् कृष्ण द्वारा उद्धव से योग-वर्णन  »  श्लोक 25
 
 
श्लोक  11.14.25 
 
 
यथाग्निना हेम मलं जहाति
ध्मातं पुन: स्वं भजते च रूपम् ।
आत्मा च कर्मानुशयं विधूय
मद्भ‍‍क्तियोगेन भजत्यथो माम् ॥ २५ ॥
 
अनुवाद
 
  जैसे सोना जब आग में पिघलता है तो अपनी अशुद्धियों को त्याग कर शुद्ध और चमकदार हो जाता है, वैसे ही भक्तियोग की अग्नि में लीन आत्मा, पूर्व जन्मों के कर्मों के कारण होने वाले सारे दोषों से शुद्ध हो जाती है और वैकुण्ठ में मेरी सेवा करने के अपने मूल स्थान को प्राप्त कर लेती है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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