कथं विना रोमहर्षं द्रवता चेतसा विना ।
विनानन्दाश्रुकलया शुध्येद् भक्त्या विनाशय: ॥ २३ ॥
अनुवाद
यदि किसी को रोमांच नहीं होता, तो उसका हृदय कैसे द्रवित हो सकता है? और यदि हृदय द्रवित नहीं होता, तो आँखों से प्रेमाश्रु कैसे बह सकते हैं? यदि कोई आध्यात्मिक सुख में चिल्ला नहीं उठता, तो वह भगवान् की प्रेमाभक्ति कैसे कर सकता है? और ऐसी सेवा के बिना चेतना कैसे शुद्ध हो सकती है?