निष्किञ्चना मय्यनुरक्तचेतस:
शान्ता महान्तोऽखिलजीववत्सला: ।
कामैरनालब्धधियो जुषन्ति ते
यन्नैरपेक्ष्यं न विदु: सुखं मम ॥ १७ ॥
अनुवाद
जो वैयक्तिक संतुष्टि की किसी इच्छा से रहित हैं, जिनके मन सदैव मुझमें आसक्त रहते हैं, जो शांत, मिथ्या मान से रहित तथा समस्त जीवों पर दयालु हैं और जिनकी चेतना कभी भी इंद्रिय सुख के अवसरों से प्रभावित नहीं होती, ऐसे व्यक्ति मुझमें ऐसा सुख पाते हैं जिसे वे व्यक्ति प्राप्त नहीं कर पाते या जान भी नहीं पाते जिनमें भौतिक जगत से विरक्ति का अभाव है।