श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 11: सामान्य इतिहास  »  अध्याय 14: भगवान् कृष्ण द्वारा उद्धव से योग-वर्णन  »  श्लोक 17
 
 
श्लोक  11.14.17 
 
 
निष्किञ्चना मय्यनुरक्तचेतस:
शान्ता महान्तोऽखिलजीववत्सला: ।
कामैरनालब्धधियो जुषन्ति ते
यन्नैरपेक्ष्यं न विदु: सुखं मम ॥ १७ ॥
 
अनुवाद
 
  जो वैयक्तिक संतुष्टि की किसी इच्छा से रहित हैं, जिनके मन सदैव मुझमें आसक्त रहते हैं, जो शांत, मिथ्या मान से रहित तथा समस्त जीवों पर दयालु हैं और जिनकी चेतना कभी भी इंद्रिय सुख के अवसरों से प्रभावित नहीं होती, ऐसे व्यक्ति मुझमें ऐसा सुख पाते हैं जिसे वे व्यक्ति प्राप्त नहीं कर पाते या जान भी नहीं पाते जिनमें भौतिक जगत से विरक्ति का अभाव है।
 
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.