श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 11: सामान्य इतिहास  »  अध्याय 14: भगवान् कृष्ण द्वारा उद्धव से योग-वर्णन  »  श्लोक 16
 
 
श्लोक  11.14.16 
 
 
निरपेक्षं मुनिं शान्तं निर्वैरं समदर्शनम् ।
अनुव्रजाम्यहं नित्यं पूयेयेत्यङ्‍‍घ्रिरेणुभि: ॥ १६ ॥
 
अनुवाद
 
  अपने भक्तों के चरण-कमलों की धूल से मैं अपने भीतर के भौतिक जगतों को पवित्र करना चाहता हूं। इसलिए मैं सदैव अपने शुद्ध भक्तों के पदचिन्हों पर चलता हूँ जो आत्मिक इच्छाओं से रहित हैं, मेरी लीलाओं के विचार में डूबे हुए हैं, शांत हैं, शत्रु-भाव से रहित हैं और हर जगह समान दृष्टिकोण रखते हैं।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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