जब तक मनुष्य आत्मा विषयक प्रत्यक्ष ज्ञान को पुनरुज्जीवित नहीं कर लेता और प्रकृति के तीन गुणों के कारण उत्पन्न भौतिक शरीर तथा मन से मोहमयी पहचान को हटा नहीं देता, तब तक उसे सतोगुणी वस्तुओं का अनुशीलन करते रहना चाहिए। सतोगुण के बढ़ने से, वह स्वत: धार्मिक सिद्धान्तों को समझ सकता है और उनका अभ्यास कर सकता है। ऐसे अभ्यास से दिव्य ज्ञान जागृत होता है।