यो जागरे बहिरनुक्षणधर्मिणोऽर्थान्
भुङ्क्ते समस्तकरणैर्हृदि तत्सदृक्षान् ।
स्वप्ने सुषुप्त उपसंहरते स एक:
स्मृत्यन्वयात्त्रिगुणवृत्तिदृगिन्द्रियेश: ॥ ३२ ॥
अनुवाद
जीवन में सजग रहते हुए, जीव अपनी इंद्रियों से भौतिक शरीर और मन की क्षणभंगुर विशेषताओं का आनंद लेता है। सपने में वह मन में ही ऐसे अनुभवों का आनंद लेता है। और गहरी नींद में सभी अनुभव अज्ञान में मिल जाते हैं। जागने, सपने और गहरी नींद के क्रम को याद करके और उस पर विचार करके, जीव समझ सकता है कि वह तीनों ही अवस्थाओं में एक ही है और दिव्य है। इस तरह वह इंद्रियों का स्वामी बन जाता है।