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श्लोक 3
श्लोक
11.13.3
धर्मो रजस्तमो हन्यात् सत्त्ववृद्धिरनुत्तम: ।
आशु नश्यति तन्मूलो ह्यधर्म उभये हते ॥ ३ ॥
अनुवाद
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सात्विक गुण से मजबूत हुआ धर्म, राजसिक और तामसिक गुणों के प्रभाव को मिटा देता है। जब राजसिक और तामसिक गुण हार जाते हैं, तब उनका मुख्य कारण अधर्म भी तुरंत नष्ट हो जाता है।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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