जीव का अहंकार उसे बन्धन में डालता है और उसे उसकी इच्छा के सर्वथा विपरीत प्रदान करता है। इसलिए, एक बुद्धिमान व्यक्ति को भौतिक जीवन का आनन्द लेने की अपनी निरंतर चिंता को त्याग देना चाहिए और भगवान में स्थिति बनाए रखनी चाहिए, जो भौतिक चेतना के कार्यों से परे हैं।