गुणेष्वाविशते चेतो गुणाश्चेतसि च प्रजा: ।
जीवस्य देह उभयं गुणाश्चेतो मदात्मन: ॥ २५ ॥
अनुवाद
हे पुत्रो, मन स्वाभाविक रूप से भौतिक इन्द्रियों के विषयों में प्रवेश करने के लिए प्रवृत्त होता है और उसी प्रकार इन्द्रियों के विषय भी मन में प्रवेश करते हैं; परन्तु ये भौतिक मन और इन्द्रियों के विषय मात्र आत्मा को ढकने वाली संज्ञाएँ हैं जो कि मेरा अंश है।