श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 11: सामान्य इतिहास  »  अध्याय 13: हंसावतार द्वारा ब्रह्मा-पुत्रों के प्रश्नों के उत्तर  »  श्लोक 24
 
 
श्लोक  11.13.24 
 
 
मनसा वचसा द‍ृष्‍ट्या गृह्यतेऽन्यैरपीन्द्रियै: ।
अहमेव न मत्तोऽन्यदिति बुध्यध्वमञ्जसा ॥ २४ ॥
 
अनुवाद
 
  इस संसार में, मन, वाणी, आँखों या बाकी इंद्रियों से जो कुछ भी अनुभव किया जाता है, वह अकेला मैं ही हूँ, मेरे अलावा कुछ और नहीं है। तुम सब इन्हें तथ्यों के सीधे विश्लेषण से समझ लो।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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