श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 11: सामान्य इतिहास  »  अध्याय 13: हंसावतार द्वारा ब्रह्मा-पुत्रों के प्रश्नों के उत्तर  »  श्लोक 13
 
 
श्लोक  11.13.13 
 
 
अप्रमत्तोऽनुयुञ्जीत मनो मय्यर्पयञ्छनै: ।
अनिर्विण्णो यथाकालं जितश्वासो जितासन: ॥ १३ ॥
 
अनुवाद
 
  मनुष्य को सावधान और गंभीर रहना चाहिए, और उसे कभी भी आलसी या खिन्न नहीं होना चाहिए। श्वास और आसन की योग प्रक्रियाओं में दक्षता हासिल करके, व्यक्ति को अपना मन सुबह, दोपहर और शाम के समय मुझ पर केंद्रित करना चाहिए, और इस तरह धीरे-धीरे मन को पूरी तरह से मुझमें लीन कर लेना चाहिए।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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