श्रीभगवानुवाच
सत्त्वं रजस्तम इति गुणा बुद्धेर्न चात्मन: ।
सत्त्वेनान्यतमौ हन्यात् सत्त्वं सत्त्वेन चैव हि ॥ १ ॥
अनुवाद
भगवान बोले: भौतिक प्रकृति के तीन गुण, सत्व, रज और तम, भौतिक बुद्धि से जुड़े हुए हैं, आत्मा से नहीं। भौतिक सत्वगुण के विकास से मनुष्य रज और तमोगुणों को जीत सकता है और पारलौकिक सत्वगुण की साधना से, वह अपने को भौतिक सत्वगुण से भी मुक्त कर सकता है।