श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 11: सामान्य इतिहास  »  अध्याय 12: वैराग्य तथा ज्ञान से आगे  »  श्लोक 9
 
 
श्लोक  11.12.9 
 
 
यं न योगेन साङ्ख्येन दानव्रततपोऽध्वरै: ।
व्याख्यास्वाध्यायसन्न्यासै: प्राप्नुयाद् यत्नवानपि ॥ ९ ॥
 
अनुवाद
 
  कठिन योग पद्धतियों का अभ्यास, दार्शनिक विचार-विमर्श, दान, व्रत-उपवास, तप-तपस्या, अनुष्ठान और यज्ञ, दूसरों को वैदिक मंत्र सिखाना, स्वयं वेदों का अध्ययन करना और संन्यास का जीवन बिताना - ये सभी बड़े प्रयास हैं, लेकिन इन सबके बावजूद भी मनुष्य मुझे प्राप्त नहीं कर सकता।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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