श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 11: सामान्य इतिहास  »  अध्याय 12: वैराग्य तथा ज्ञान से आगे  »  श्लोक 13
 
 
श्लोक  11.12.13 
 
 
मत्कामा रमणं जारमस्वरूपविदोऽबला: ।
ब्रह्म मां परमं प्रापु: सङ्गाच्छतसहस्रश: ॥ १३ ॥
 
अनुवाद
 
  वे सभी सैकड़ों हज़ार गोपियां, जो मुझे अपना सबसे ज्यादा मनभावन प्रेमी मानकर उस भाव से मुझ पर मोहित थीं, मेरी वास्तविक स्थिति से अनजान थीं। फिर भी मेरे साथ घनिष्ठ संगति करके गोपियों ने मुझे, जो परम सत्य हैं, प्राप्त किया।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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