रामेण सार्धं मथुरां प्रणीते
श्वाफल्किना मय्यनुरक्तचित्ता: ।
विगाढभावेन न मे वियोग-
तीव्राधयोऽन्यं ददृशु: सुखाय ॥ १० ॥
अनुवाद
वृंदावन के निवासी, गोपियों सहित मेरी ओर गहन प्रेम से सदा अनुरक्त थे। इस कारण जब मेरे चाचा अक्रूर मेरे भाई बलराम और मुझे मथुरा नगरी ले आए, तो वृंदावनवासियों को मेरे वियोग के कारण अत्यधिक मानसिक कष्ट हुआ और उन्हें सुख का कोई अन्य साधन नहीं मिला।