निरोधोत्पत्त्यणुबृहन्नानात्वं तत्कृतान् गुणान् ।
अन्त:प्रविष्ट आधत्त एवं देहगुणान् पर: ॥ ९ ॥
अनुवाद
ईंधन की स्थिति के अनुसार, जैसे अग्नि सुप्त, प्रकट, क्षीण और तेज जैसे विभिन्न रूपों में दिखाई दे सकती है, ठीक उसी प्रकार आत्मा भी भौतिक शरीर में प्रविष्ट होती है और शरीर के विशिष्ट लक्षणों को स्वीकार करती है।