श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 11: सामान्य इतिहास  »  अध्याय 10: सकाम कर्म की प्रकृति  »  श्लोक 2
 
 
श्लोक  11.10.2 
 
 
अन्वीक्षेत विशुद्धात्मा देहिनां विषयात्मनाम् ।
गुणेषु तत्त्वध्यानेन सर्वारम्भविपर्ययम् ॥ २ ॥
 
अनुवाद
 
  एक शुद्ध आत्मा को ये समझना चाहिए कि इन्द्रियों को तृप्त करने में लीन रहने वाले जीवों ने गलत रूप से इन्द्रियों के सुखों वाली वस्तुओं को सच मान लिया है, इसीलिए उनके सारे प्रयास में विफलता ही मिलेगी।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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