भगवान कृष्ण ने सोचा, "यह यदुवंश के सदस्य सदैव मेरे शरण में रहे हैं और उनका ऐश्वर्य असीम है, इसलिए कोई भी बाहरी ताकत इस वंश को परास्त नहीं कर सकती। लेकिन अगर मैं इस वंश के भीतर झगड़े को प्रोत्साहित करूं, तो यह झगड़ा एक ऐसे आग की तरह होगा जो बांस की झाड़ी में घर्षण से पैदा होती है, जिससे मैं अपना असली उद्देश्य पूरा कर सकूंगा और अपने नित्य निवास को लौट सकूंगा।"