श्रीमद् भागवतम » स्कन्ध 11: सामान्य इतिहास » अध्याय 1: यदुवंश को शाप » श्लोक 22 |
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| | श्लोक 11.1.22  | |  | | कश्चिन्मत्स्योऽग्रसील्लोहं चूर्णानि तरलैस्तत: ।
उह्यमानानि वेलायां लग्नान्यासन् किलैरका: ॥ २२ ॥ | | अनुवाद | | किसी मछली ने उस लोहे का निवाला निगल लिया और लहरों द्वारा लोहे के बचे हुए टुकड़े तट पर पहुँचे जहाँ वो बड़े, तीखे नरकटों के रूप में उग आये। | |
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