श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 11: सामान्य इतिहास  »  अध्याय 1: यदुवंश को शाप  »  श्लोक 11-12
 
 
श्लोक  11.1.11-12 
 
 
कर्माणि पुण्यनिवहानि सुमङ्गलानि
गायज्जगत्कलिमलापहराणि कृत्वा ।
कालात्मना निवसता यदुदेवगेहे
पिण्डारकं समगमन् मुनयो निसृष्टा: ॥ ११ ॥
विश्वामित्रोऽसित: कण्वो दुर्वासा भृगुरङ्गिरा: ।
कश्यपो वामदेवोऽत्रिर्वसिष्ठो नारदादय: ॥ १२ ॥
 
अनुवाद
 
  एक बार विश्वामित्र, असित, कण्व, दुर्वासा, भृगु, अंगिरा, कश्यप, वामदेव, अत्रि और वसिष्ठ मुनियों ने नारद और अन्य लोगों के साथ मिलकर प्रचुर पुण्य प्रदान करने वाला, परम सुख लाने वाला और मात्र उच्चारण करने से संपूर्ण विश्व के कलियुग के पापों को दूर करने वाला एक सकाम अनुष्ठान किया। इन मुनियों ने इस अनुष्ठान को कृष्ण के पिता और यदुओं के अग्रणी वसुदेव के घर में संपन्न किया। जब उस समय वसुदेव के घर में कालरूप में निवास कर रहे कृष्ण उत्सव की समाप्ति होने पर मुनियों को आदरपूर्वक विदा कर चुके, तो वे मुनि पिण्डारक नामक पवित्र तीर्थस्थान चले गए।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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