क्षौमं वास: पृथुकटितटे बिभ्रती सूत्रनद्धं
पुत्रस्नेहस्नुतकुचयुगं जातकम्पं च सुभ्रू: ।
रज्ज्वाकर्षश्रमभुजचलत्कङ्कणौ कुण्डले च
स्विन्नं वक्त्रं कबरविगलन्मालती निर्ममन्थ ॥ ३ ॥
अनुवाद
अपने स्थूल शरीर पर केसरिया-पीली साड़ी पहने और कमर में करधनी बाँधे, माता यशोदा मथानी में काफी परिश्रम कर रही थीं। उनकी चूड़ियाँ और कानों के कुंडल हिल-डुल रहे थे और उनका पूरा शरीर हिल रहा था। अपने पुत्र के प्रति प्रगाढ़ प्रेम के कारण उनके स्तन दूध से गीले थे। उनकी भौंहें अत्यन्त सुंदर थीं और उनका मुखमण्डल पसीने से तर था। उनके बालों से मालती के फूल गिर रहे थे।