श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 83: कृष्ण की रानियों से द्रौपदी की भेंट  »  श्लोक 11
 
 
श्लोक  10.83.11 
 
 
श्रीकालिन्द्युवाच
तपश्चरन्तीमाज्ञाय स्वपादस्पर्शनाशया ।
सख्योपेत्याग्रहीत् पाणिं योऽहं तद्गृहमार्जनी ॥ ११ ॥
 
अनुवाद
 
  श्री कालिन्दी ने कहा : भगवान को पता था कि एक दिन उनके चरणकमलों को छूने की आशा से मैं कठोर तपस्या और त्याग कर रही हूँ। इसलिए वे अपने मित्र के साथ मेरे पास आये और हम दोनों का विवाह हो गया। अब मैं उनके महल में झाड़ू लगाने वाली दासी के रूप में लगी रहती हूँ।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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