श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 72: जरासन्ध असुर का वध  »  श्लोक 20
 
 
श्लोक  10.72.20 
 
 
योऽनित्येन शरीरेण सतां गेयं यशो ध्रुवम् ।
नाचिनोति स्वयं कल्प: स वाच्य: शोच्य एव स: ॥ २० ॥
 
अनुवाद
 
  निस्संदेह, वह मनुष्य निंदनीय एवं दयनीय है जो क्षणिक शरीर से महान संतों द्वारा गाई गई चिरस्थायी ख्याति को प्राप्त करने में असमर्थ रहता है, भले ही वह ऐसा करने में सक्षम होता है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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