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स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ
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अध्याय 7: तृणावर्त का वध
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श्लोक 23
श्लोक
10.7.23
नापश्यत्कश्चनात्मानं परं चापि विमोहित: ।
तृणावर्तनिसृष्टाभि: शर्कराभिरुपद्रुत: ॥ २३ ॥
अनुवाद
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तृणावर्त द्वारा फेंके गये बालू के कारण सब लोग एक-दूसरे को नहीं देख पा रहे थे, इसलिए उनकी आंखों में धूल गड़ गई थी और उनका भ्रम हो गया था।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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