श्रीमद् भागवतम » स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ » अध्याय 7: तृणावर्त का वध » श्लोक 17 |
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| | श्लोक 10.7.17  | |  | | विप्रा मन्त्रविदो युक्तास्तैर्या: प्रोक्तास्तथाशिष: ।
ता निष्फला भविष्यन्ति न कदाचिदपि स्फुटम् ॥ १७ ॥ | | अनुवाद | | ब्राह्मण जो वैदिक मंत्रों का उच्चारण करने में पूर्ण अधिकार रखते थे, योगशक्ति से पूर्ण योगी थे। उनके द्वारा दिया गया आशीर्वाद कभी निष्फल नहीं होता था। | |
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