श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 59: नरकासुर का वध  »  श्लोक 2-3
 
 
श्लोक  10.59.2-3 
 
 
श्रीशुक उवाच
इन्द्रेण हृतछत्रेण हृतकुण्डलबन्धुना ।
हृतामराद्रिस्थानेन ज्ञापितो भौमचेष्टितम् ।
सभार्यो गरुडारूढ: प्राग्ज्योतिषपुरं ययौ ॥ २ ॥
गिरिदुर्गै: शस्‍त्रदुर्गैर्जलाग्‍न्यनिलदुर्गमम् ।
मुरपाशायुतैर्घोरैर्द‍ृढै: सर्वत आवृतम् ॥ ३ ॥
 
अनुवाद
 
  शुकदेव गोस्वामी ने कहा: जब भौम ने इन्द्र माता के कुंडलों के साथ साथ वरुण का छत्र और मंदरा पर्वत की चोटी पर स्थित देवताओं की क्रीड़ास्थली को चुरा लिया तो इन्द्र ने कृष्ण के पास जाकर इन दुष्कृत्यों की सूचना दी। तब भगवान अपनी पत्नी सत्यभामा को साथ लेकर गरुड़ पर सवार होकर प्राग्ज्योतिषपुर के लिए रवाना हो गए जो चारों ओर से पर्वतों, बिना पुरुषों के चलाए जाने वाले हथियारों, जल, अग्नि और वायु और मुर पाश तारों के अवरोधों से घिरा हुआ था।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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