नूनं ह्यदृष्टनिष्ठोऽयमदृष्टपरमो जन: ।
अदृष्टमात्मनस्तत्त्वं यो वेद न स मुह्यति ॥ ३० ॥
अनुवाद
प्रत्येक व्यक्ति अवश्य ही प्रारब्ध कर्मों के अनुसार ही काम करता है, जो उसके शुभ-अशुभ कर्मों के फल निर्धारित करते हैं। दूसरे शब्दों में, एक व्यक्ति को पुत्र या पुत्री अदृश्य प्रारब्ध के कारण ही प्राप्त होते हैं और जब पुत्र या पुत्री नहीं रहते, तो वह भी अदृश्य प्रारब्ध के कारण ही होता है। प्रारब्ध ही हर किसी का सर्वोच्च नियंत्रक है। जो इसे जानता है, वह कभी मोहग्रस्त नहीं होता।